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ग़ज़ल-तीन / रेणु हुसैन
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याद भरी पुरवाई आई
तन्हा है लेकिन तन्हाई
बेचैंनी में दिन गुज़रा
रात भी सूनी-सूनी आई
हर दस्तक पर दिल टूटा
हर दस्तक पर रुसवाई
जाने क्या-क्या कहना था
पर होंठों तक बात न आई
दूर-दूर तक फैला जंगल
दूर-दूर तक तन्हाई