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बर्फ़ / कर्णसिंह चौहान

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अब किसी भी समय झरेगी बर्फ
उसी के रंग में रंग जाएगा
आसमान
और बीच का पूरा विस्तार
उसी में ढंक जाएगा
शहर
सड़के, इमारतें और पेड़

वह अब कभी भी गिरेगी
नज़र के सामने या नींद में।

अपने रुप सा खुला है उसका स्वभाव
चौड़े में चल रही है उसकी तैय्यारी
घिर रहे हैं पारदर्शी बादल
मौन साधे खड़े है पेड़
आह्लाद में आस लगाए नगर
वह गिरेगी
निरंतर
तमाम असमानताओं, दाग-धब्बों को
ढकती हुई
बदल जाएगा पूरा परिदृश्य
कोई नहीं होगा
न हलचल न हवा
बस उसका एकछ्त्र राज होगा
समरस ।

नगण्य हो जाएगा
जीवन का सब क्रिया-व्यापार
केवल प्रकृति की मनोहर क्रीड़ा होगी
उसके संग ठिठोली करते
बच्चे होंगे बस

इस संसार का सूनापन भरते ।