भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुकुटधर पांडेय / परिचय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 30 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

30 सितम्बर सन् 1895 को छत्तीसगढ़, बिलासपुर के एक छोटे से गाँव बालपुर में जन्मे पं० मुकुटधर पाण्डेय अपने आठ भाईयों में सबसे छोटे
थे । इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई । इनके पिता पं.चिंतामणी पाण्डेय संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे और भाईयों में पं० लोचन प्रसाद पाण्डेय जैसे हिन्दी के ख्यात साहित्यकार थे । इनके संबंध में एक लेख में प्रो०अश्विनी केशरवानी जी कहते हैं – ‘पुरूषोत्तम प्रसाद, पद्मलोचन, चंद्रशेखर, विद्याधर, वंशीधर, मुरलीधर और मुकुटधर तथा बहनों में चंदनकुमारी, यज्ञकुमारी, सूर्यकुमारी और आनंद कुमारी थीं। सुसंस्कृत, धार्मिक और परम्परावादी घर में वे सबसे छोटे थे। अत: माता-पिता के अलावा सभी भाई-बहनों का स्नेहानुराग उन्हें स्वाभाविक रूप से मिला। पिता चिंतामणी और पितामह सालिगराम पांडेय जहाँ साहित्यिक अभिरूचि वाले थे वहीं माता देवहुति देवी धर्म और ममता की प्रतिमूर्ति थीं। धार्मिक अनुष्ठान उनके जीवन का एक अंग था। अपने अग्रजों के स्नेह सानिघ्य में 12 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने लिखना शुरू किया। तब कौन जानता था कि यही मुकुट छायावाद का ताज बनेगा...?’

बाल्‍यकाल में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर बालक पं०मुकुटधर पाण्डेय के मन में गहरा प्रभाव पडा किन्तु वे अपनी सृजनशीलता से विमुख नहीं हुए । सन् 1909 में 14 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कविता आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘स्वदेश बांधव में प्रकाशित हुई एवं सन् 1919 में उनका पहला कविता संग्रह ‘पूजा के फूल’ प्रकाशित हुआ । इतनी कम उम्र में अपनी प्रतिभा और काव्य-कौशल को इस तरह से प्रस्तुत करने वाले पं० मुकुटधर पाण्डेय अपने अध्ययन के संबंध में स्वयं कहते हैं – ‘सन् 1915 में प्रयाग विश्ववविद्यालय की प्रवेशिका परीक्षा उतीर्ण होकर मैं एक महाविद्यालय में भर्ती हुआ पर मेरी पढ़ाई आगे नहीं बढ़ पाई । मैंने हिन्दी, अरबी, बंगला और उड़िया साहित्य का अध्ययन किसी विद्यालय या महाविद्यालय में नहीं किया । घर पर ही मैंनें उनका अनुशीलन किया और उसमें थोड़ी बहुत गति प्राप्त की । ‘महानदी की प्राकृतिक सुषमा सम्पन्न तट और सहज ग्राम्य-जीवन का रस लेते हुए कवि नें अपनी लेखनी को भी इन्हीं रंगों से संजोया -

कितना सुन्दर और मनोहर, महानदी यह तेरा रूप ।
कल-कल मय निर्मल जलधारा, लहरों की है छटा अनूप ।
तुझे देखकर शैशव की है, स्मृतियाँ उर में उठती जाग ।
लेता है किशोर काल का, अँगडाई अल्हड़ अनुराग ।

अबाध गति से देश के सभी प्रमुख पत्रिकाओं में लगातार लिखते हुए पं० मुकुटधर पाण्डेय ने हिन्दी पद्य के साथ-साथ हिन्दी गद्य के विकास में भी अपना अहम योग दिया । पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अनेक लेखों व कविताओं के साथ ही उनकी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं – ‘पूजाफूल (1916), शैलबाला (1916), लच्छमा (अनूदित उपन्यास, 1917), परिश्रम (निबंध, 1917), हृदयदान (1918), मामा (1918), छायावाद और अन्य निबंध (1983), स्मृतिपुंज (1983), विश्वबोध (1984), छायावाद और श्रेष्ठ निबंध (1984), मेघदूत (छत्तीसगढ़ी अनुवाद, 1984) आदि प्रमुख है। हिन्‍दी के विकास में योगदान के लिये इन्हें विभिन्न अलंकरण एवं सम्मान प्रदान किये गये। भारत सरकार ने भी इन्हें ‘पद्म श्री’ प्रदान की । पं०रविशंकर विश्‍वविद्यालय द्वारा भी इन्हें मानद् डी०लिट की उपाधि प्रदान की गई ।