भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अँधेरे ने किया अभयदान / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 30 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' अँधेरे ने…)
अँधेरे ने किया अभयदान
रोशनी हमें बाँट देती है
टुकड़ों-टुकड़ों में,
बेतरतीब बिखेर-छींट देती है
इतनी क्रूरता से पटककर
छितरा देती है
कि बहुत मुश्किल हो जाता है
अपने हिज्जे-हिज्जे समेटना
और खुद में वापस आना
अँधेरा हमें लौटा देता है
हमें और हमारे टुकड़ों को जोड़ देता है,
हमारे बिखराव को
अपनी मुट्ठी में समेत
हमें साकार और ठोस रहने देता है,
बड़े लाड़-दुलार से
छिपा लेता है
अपनी गरम-गरम गोद में--
दुनियावी नज़रों से बखूबी बचाकर
अँधेरे को भुतहे ख्यालों से
अलग कर दो
उससे अच्छा मित्र कहाँ मिलेगा
उसकी पालथी में बैठ
हम रोएँ या बौखलाएं,
सिर और छाती पीट-पीट
तड़पें या मर जाएं,
मजाल क्या कि
कोई हमारी खिल्ली उड़ा सके.