भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उल्टे हुए पड़े को देख कर / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 30 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>मेरी जड़ें जमीन में कितनी गहरी हैं यह सोचने वाला पेड़ आंधी के थ…)
मेरी जड़ें
जमीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आंधी के थपेड़ों से
उलट गया जमीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?
रोज चलती है
यहां अभावों की आंधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन
अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़े
जमीन में कितनी गहरी हैं ?