भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पगडंडी / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:13, 30 जून 2010 का अवतरण
चौड़े रस्ते पर सब चलते
पगडंडी पर कौन चलेगा?
सीधे-सादे पौधों को
मिलकर आरे काटें
बोझ उठाती शाखों को
चुन-चुन करके छाँटें
यों क्रूर हुए इन दाँतों की
धार मोड़ने कौन बढ़ेगा?
गाँव किनारे पेड़ों पर
कौवों को वास मिला
प्यारी कोयल-मैना को
केवल वनवास मिला
मीठे-रसमय गीत सुनाते
वनवासी को कौन वरेगा?
उड़े धरा से बहुत धुआँ
तिल-तिल सबको मारे
दुख में डूबे चमकीले
नभ के सारे तारे
चंदनवन की आग बुझाए
इन्दर राजा कौन बनेगा?