भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घमासान हो रहा / भारतेन्दु मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 2 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भारतेन्दु मिश्र }} {{KKCatNavgeet}} <poem> आसमान लाल-लाल हो रह…)
आसमान लाल-लाल हो रहा
धरती पर घमासान हो रहा।
हरियाली खोई है
नदी कहीं सोई है
फसलों पर फिर किसान रो रहा।
सुख की आशाओं पर
खंडित सीमाओं पर
सिपाही लहूलुहान सो रहा।
चिनगी के बीज लिए
विदेशी तमीज लिए
परदेसी यहाँ धान बो रहा।