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फलेंगे रसाल / ओम पुरोहित ‘कागद’
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जब तक
सांस है
आस है;
थार के रोम-रोम पर
उगेंगे
हरियल रूंख
फलेंगे रसाल
आच्छादित होंगे
हरितपर्ण अनायास
ज्यों रोही में
सूनसान धोरे पर
उग आता है
गीला गच्च भंपोड़ ।