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आदमी की बिसात / तारादत्त निर्विरोध
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:31, 3 जुलाई 2010 का अवतरण
सच सभी का कहा नहीं होता,
हादसा हर दफा नहीं होता ।
जख्मेदिल फिर हरा नहीं होता,
आजकल वो खफा नहीं होता ।
साँस लेने का मोल लेते हो,
इससे कोई नफा नहीं होता ।
ज़िंदगी से जो
कट के रह जाए,
वो कोई फलसफा नहीं होता ।
दर्द की बात फेर ही कीजे,
दर्द दिल से जुदा नहीं होता ।
आदमी की बिसात क्या होगी,
आदमी तो खुदा नहीं होता ।
उम्र भर "निर्विरोध" रह के जिये,
वरना दुनिया में क्या नहीं होता ?