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नींव तक / तारादत्त निर्विरोध
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:36, 3 जुलाई 2010 का अवतरण
जब मेरा खत उसे मिला होगा,
फूल यादों का फिर खिला होगा ।
बेखुदी में भी जो नहीं बोला,
दर्द से उसको क्या गिला होगा ।
बाद मुद्दत के रूप बनते हैं,
टूट जाना तो सिलसिला होगा ।
याद करता उसे जमाना भी,
लौटकर जो नहीं मिला होगा ।
एक लम्हा भी जी नहीं सकता,
वो पहाडों का इक किला होगा ।
जो गया तोड कर सभी रिश्ते,
लोग कहते हैं बेवफा होगा ।
जिसने खुद को दफन किया खुद में,
वो किसी नींव तक हिला होगा ।