भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हद / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:54, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>कोई भी ऊंचाई आखिर क्या देती है सिवाय एक हद के मैं कभी नहीं चाहूं…)
कोई भी ऊंचाई
आखिर क्या देती है
सिवाय एक हद के
मैं कभी नहीं चाहूंगा
मेरी कविता
बंधे किसी हद में
कोई भी पहाड़
महज़ एक पत्थर हो सकता है
और कोई भी पत्थर
एक विषालकाय पर्वत
पूरा समंदर
हो सकता है महज़ एक चुल्लू
एक चुल्लू
पूरा समंदर