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सुन ओ मेरे पति! अरे ओ पुरुष! / सलमा
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जिस घर में रहती हूँ
मेरा नहीं, तुम्हारा है;
हैं जो मेरे पह्न
वे नहीं हैं साक्षी मेरे यहां रहने के...
ये तुम्हारा घर
इसकी सुख-सुविधाएं
मेरे भीतर जगाती हैं
बाहर की दुनिया का डर
हर घड़ी, घिरी अनजान घबराहट से
खुद पर हावी अविश्वास...
कड़ी धूप में
मूसलाधार बारिश में
अन्य समय से अधिक
घर में रहने से अधिक
घर से बाहर
मेरे साथ साथ निकलती हैं
तुम्हारी हिदायतें
मेरे कानों में बजती हैं
बीमार है
तन और मन...