कैसे दे देते / हरीश भादानी
जीना बहुत जरूरी समझा
इसीलिए सारे सुख
गिरवी रख
लम्बी उम्र कर्ज में ले ली
लेकिन
जितने सपने साथ निभने आये
हमसे भी ज्यादा मुफलिस निकले वे
जैसा भी था
सड़काऊ था दर्द मलंग
हमारा था
लेकिन यादें तो बाजारू निकली
खुद तो नाची
टेढ़ाकर-कर हमें नचाया
गली-गली बदनाम कर दिया
कई-कई आए
अपने होकर
सिर्फ सूद में ही ले लेने
आखर खिला-पिलाकर
पाले-पोषे गए इरादे
ये अपने थे
या थे शाइलाक?
उजियारा पी
पगे इरादों को ही पाने
उथल दिया सारी धरती को
काट दिए पर्वती कलेजे
रोकी सब आवारा नदियां
बांध दिया सागर कोनों में
इतना जीने बाद मिले वे
सिर्फ सूद में ही कैसे दे देते?
कर्ज उमर का
फक़त इसलिए लिया था
कागज पर लिखवाए गए
सभी समझौते तोड़ें
सूद चुकाने का कानुन जलाएं
अपने हाथों
लिखे इबारत
जिसे हमारे बाद
जनमने वाली पीढ़ी
अपने समय मुताबिक बांचे।