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हवा / सांवर दइया
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कुछ दिन पहले
तुम बांध रहे थे उसकी हवा
आज इसकी बांधने में लगे हो
हो सकता है—
कल किसी तीसरे की बांधने निकल पड़ो
और तीसरे तक पहुंचते-पहुंचते
रास्ते में ही बदल जाए हवा
तो चौथे की तरफ चल पड़ना
शर्म की बात तो है नहीं
हवा की क्या
हवा तो बदलती ही रहती है !
बदलना ही धर्म है हवा का
जानते हो तुम
तुम्हें हम
तुम्हें कोई दोष नहीं दोस्त !
हवा के समानधर्मा जो हो तुम !