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गलत हो गया / हरीश भादानी

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एक और तलपट
                    गलत हो गया

डैने खोल गुमसुम
                    दो पहर
पहले उठा
पसरा रास्ते को काट
दूरियां लीकता
                    सिलसिला रूक गया
हुआ कुछ भी नहीं
सफ़र से समय का
गुणनफल गलत हो गया

दिशाओं-दिशाओं
                    गई एषणा
आ जुड़े पंक्तियां
रोशनी के आकार की
हुआ कुछ भी नहीं
आकाश उतरा
अंधेरा ठर गया
पत्थरों को
उकेरा किये हाथ
सांस होती रही हवा
                    आग-पानी
पांव रच-रच गए रेत
उतरे बिखेरू
अड़-अड़ गए
छितरा गए,
                    एक-एक क्षण पी गए
हुआ कुछ भी नहीं
                    उम्र का
       एक और तलपट
                    गलत हो गया