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ओ दिशा / हरीश भादानी
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स्वरों के पखेरू उड़ा
ओ दिशा
कब से खड़े रास्ते घेर कर
संशयों के अंधेरे
सहमी हुई खोज ड्योढ़ी खड़ी
ठहरे हुए ये चरण
सिलसिले हो उठें
संकल्प की हथेली पर
दृश्टि का सूर्य रख ले
ओ दिशा
मौन के सांप कुंडली लगाये हुए
हर एक चेहरा
हर दूसरे से अलग जी रहा
सांस बजती नहीं
आंख से आंख मिलती नहीं
सारे शहर में कहीं कुछ धड़कता नहीं
चोंच भर-भर बुनें
शोर का आसमां
स्वरों के पखेरू उड़ा
ओ दिशा