भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसो जल / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:48, 6 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>अंतरघट तक प्यासे तपते थार को कुछ तो मिले आधार बरसो जल धारदार आर-…)
अंतरघट तक
प्यासे
तपते थार को
कुछ तो मिले आधार
बरसो जल
धारदार
आर-पार!
बरसों से सूनी
बिन साथी
पसरी हूं नि:श्छल
पाक प्यार की चाह में
ह्रदयंगम हो जाने
बसलो जल
बार-बार
आर-पार!
तू जो पिघले
पत्ता निकले
ठूंठ हर हो जाए
जीव को मिले आधार
कलंक मरुथल का धुल जाए
उतरो जल
डार-डार
थार-पार।