जिनके जलते हैं पुतले / मनोज श्रीवास्तव
जिनके जलते हैं पुतले
जिनके जलते हैं पुतले
बीच चौराहे
राजमार्गों के सामने
या, गली-कूचों के
दाएं-बाएं,
वे छपते तो हैं
अखबारों में
और तब भी छपते रहेंगे
जाब उजले कपडे पहन
वे डिनर कर रहे होंगे
किसी राष्ट्राध्यक्ष
या, अंडरर्वर्ल्ड के मुखियाओं संग,
या, जब सार्वजनिक रूप से
कर्णभेदी जयघोषो के बीच
उन्हें माल्यार्पित किया जाएगा--
गाहे-बगाहे
क्योंकि उनके पुतलों का जलना
और विजयमाल से अलंकृत होणा
बहुत काम अंतर हैं दोनों में
उनके लिये
जितने अधिक जलते हैं
उनके पुतले,
मस्त लहालहाएंगे
महात्त्वाकांक्षाओं के
उनके खेत उतने,
क्योंकि नहीं जला करते
जनसाधारण के पुतले
हां, जलती रही हैं
उनकी कुच्ह चीजें
जिनकी सन '४७ से
बढ गई दाहकता ऐसे
कि उदराग्नि की तपिश से
बढता रहा है
धरती का बुखार,
इच्छाओं-कामनाओं के
अनखिले फूल