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बचा है कुछ हरा / राजेश कुमार व्यास
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पेड़ों में
बचे हैं
अभी भी
हरे पत्ते;
नम आंखों में
बचे हैं
अभी भीआ
बहुत-से सपने;
धूप में
बची है
अभी भी
थोड़ी-सी छांव;
रीतते मन में
बचा है
अभी भी
बीता अतीत;
उदासी में
बची है
अभी भी
थोड़ी-सी मुस्कान;
बाहर नहीं तो अंदर
बचा है
अभी भी
कुछ हरा।
नहीं,
अभी तो
कुछ भी
नहीं झरा।