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इस लिए डोलती हूँ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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इधर-उधर
सांय-सांय
बहती हवा
कहती है मुझे
प्रसूता हो तुम
कल्पतरु से सुखदायी
हरियल पूत प्यारे।
यह सुन
कब टिकें
पांव धरती पर मेरे
इसी लिए डोलती हूं
कण-कण
हवाओ के संग
इधर-उधर निसंग।