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हरा कर देगी / ओम पुरोहित ‘कागद’
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अभी तो
खुद प्यासी है मरुधरा
तभी तो पी लेती है
आकाश से बरसा
प्यास भर पानी।
भूखी है अभी तो
तभी तो खा लेती है
रेत में बोया बीज।
उभरेगी
जब भी
हरा कर देगी
खेती में बोया बीज।
कुछ ठहरो
पेट का पेटा भरने दो
रलस्वला है मरुधरा
सृजन राग गढ़ने दो।