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लिख देता है जल / ओम पुरोहित ‘कागद’

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ओ प्रजापति!
जिन हाथों तुम ने
प्यास लिखी
उन्ही हाथों
लिख देता जल
तपते थार में
भले ही
मांड देता
एक भरी छागळ
और
टांग देता
उस कुबड़े
खेजड़े की खोह में
जो
पल-पल
जल-जल
पल रहा है
जल की प्रतीक्षा और मोह में।