भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न आते हमें इसमें तकरार क्या थी / इक़बाल

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 7 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> न आते हमें इसमें तकरार क्या थी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


न आते हमें इसमें तकरार क्या थी
मगर वादा करते हुए आर<ref>शर्म</ref>क्या थी

तुम्हारे पयामी<ref>पत्रवाहक</ref> ने ख़ुद राज़ खोला
ख़ता इसमें बन्दे की सरकार क्या थी?

भरी बज़्म<ref>सभा</ref> में अपने आशिक़ को ताड़ा
तिरी आँख मस्ती में हुशियार क्या थी

तअम्मुल<ref>संकोच</ref> तो था उनको आने में क़ासिद<ref>पत्रवाहक</ref>
मगर ये बता तर्ज़े-इन्कार<ref>मना करने का तरीक़ा</ref> क्या थी?

खिंचे ख़ुद-ब-ख़ुद जानिबे-तूर<ref>तूर नामक पर्वत की ओर</ref> मूसा
कशिश<ref>आकर्षण</ref> तेरी ऐ शौक़े-दीदाए<ref>दर्शनाभिलाषी</ref> क्या थी

कहीं ज़िक्र रहता है इक़बाल तेरा
फ़ुसूँ<ref>जादू</ref> था कोई तेरी गुफ़्तार<ref>बातचीत</ref> क्या थी


 

शब्दार्थ
<references/>