भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हद / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 8 जुलाई 2010 का अवतरण
क़सम खाए बिना
जहाँ किसी बात को सच न माना जाए
और उसके बाद भी
सचाई सन्दिग्ध हो
जहाँ क़ानून को भी यक़ीन न हो
और अपराधी को भी
वहाँ घबराना स्वाभाविक है
तब तो और भी ज़्यादा
जब कोई हद हो
जैसे कि- मौत।