भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मगना नहीं करे गुहार / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 8 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>अकाल है गांव में कह गया है प्रशासन जो आया था अभी-अभी जमींदार की ज…)
अकाल है गांव में
कह गया है प्रशासन
जो आया था
अभी-अभी
जमींदार की जीप पर ।
कहां है अकाल
पूछता सत्तू
चीखता है
जमींदार की बही में
कहां है अंगूठों का अकाल ?
साहूकार की चौपड़ी में
कहां है ब्याज का अकाल
और लगान वसूलते-वसूलते
प्रशासन क्यों हो गया है कंगाल ?
एक बार फिर
चीखता है सत्तू
थूकता है जीप पर ।