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बची रह सके आस / ओम पुरोहित ‘कागद’

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सात गांठ की
धोती पहने
मगना नहीं करे गुहार
रोटी बेटी का
हक गांव में
कैसे छोड़े घर-बार !

मांगे भी तो किस से
भूख पसरी है चारों कूंट
कर अकालिया श्रृंगार
और आहत है
खुद अकाल से
मुड़दल बौना दरबार ।