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गंगा-स्तवन–एक / वीरेन डंगवाल
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यह वन में नाचती एक किशोरी का एकांत उल्लास है
अपनी ही देह का कौतुक और भय !
वह जो झरने बहे चले आ रहे हैं
हजारों-हजार
हर कदम उलझते-पुलझते कूदते-फांदते लिए अपने साथ अपने-अपने इलाके की
वनस्पतियों का रस और खनिज तत्व
दरअसल उन्होंने ही बनाया है इसे
देवापगा
गंग महरानी !
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