भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहो हरि ऐसी तौ नहिं कीजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 10 जुलाई 2010 का अवतरण
अहो हरि ऐसी तौ नहिं कीजै।
अपनी दिसि बिलोकि करुनानिधि हमरे दोस न लीजै॥
तुव माया मोहित कहँ जानै कैसे मति रस भीजै।
’हरीचंद’ पहिलें अपनो करि फिर काहे तजि दीजै॥