भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नैन भरि देखौ गोकुल-चंद / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 10 जुलाई 2010 का अवतरण
नैन भरि देखौ गोकुल-चंद।
श्याम बरन तन खौर बिराजत, अति सुंदर नंद-नंद।
विथुरी अलकैं मुख पै झलकैं, मनु दोऊ मन के फंद।
मुकुट लटक निरखत रबि लाजत, छबि लखि होत अनंद।
संग सोहत बृषभानु-नंदिनी, प्रमुदित आनंद-कंद।
’हरीचंद’ मन लुब्ध मधुप तहँ पीवत रस मकरंद॥