रच्छहु निज भुज तर सह साजा ।
सब समर्थ राजन के राजा ।
अलख राज कर सब बल-खानी ।
बिनय सुनहु बिनवत सब कोई ।
पूरब सों पच्छिम लौं जोई ।
राजभक्त-गन इक मन होई ।
हे प्रभु रच्छहु श्री महरानी ।
रच्छहु निज भुज तर सह साजा ।
सब समर्थ राजन के राजा ।
अलख राज कर सब बल-खानी ।
बिनय सुनहु बिनवत सब कोई ।
पूरब सों पच्छिम लौं जोई ।
राजभक्त-गन इक मन होई ।
हे प्रभु रच्छहु श्री महरानी ।