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सतएँ अठएँ मों घर आवै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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सतएँ अठएँ मों घर आवै ।
तरह तरह की बात सुनाव ।
घर बैठा ही जोड़ै तार ।
क्यों सखि सज्जन नहिं अखबार ।