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देखूँगा फिर क्या कभी / त्रिलोचन
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देखा है मैं ने तुम्हें आज अभी
सोचा है
देखूँगा फिर क्या कभी
किसी दिन
ऐसे ऋण
नयन कहाँ पाते हैं
कंठ प्यास से
व्याकुल गाते हैं
उषा एक ही क्षण
के लिए हँसी
प्राणों में जैसे
वह हँसी बसी
मन का अवसाद चला गया सभी ।