भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी/ ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:49, 15 जुलाई 2010 का अवतरण
ज़िन्दगी क्या है ?
जब-जब भी सोचा
हर बार
मुंह लगता सा उतर पाया।
मैंने पाया ;
मां की गोद में
रोते बच्चे के
आगे पड़ी
दूध की
खाली बोतल है -ज़िन्दगी।
रोजगार की तालश में
रेल के नीचे
कटी पड़ा
युवा लाश की
भूखी मां का प्रलाप है- ज़िन्दगी।
भ्रष्टाचार
मुनाफाखोरी
बे-ईमानी
नेता गिरी के लिए पुरस्कार
और अधिकारों की मांग के लिए
खांडे की धार है- ज़िन्दगी।
सब कुछ
देखती
सुनती
जमाने के दर्द
अपने में
संजोती
सहती
लेकिन फिर भी
भाव चेहरे पर रखती
आज का
ताज़ा अखबार है- ज़िन्दगी।