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उड़ान हूँ मैं / अरुणा राय

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हर बात के मानी नहीं होते
चीज़ें होती हैं
अपनी सम्पूर्णता में बोलती हुई
हर बार उनका कोई अर्थ नहीं होता
उन्हें सीमित करता हुआ

जैसे अपने अनंत रश्मि बिन्दुओं से बोलती
सुबहें होती हैं
जैसे फैलाती है तुम्हारी निगाह
छोर अछोर को समेटती ...

जीवन बढ़ता है
तमाम अर्थो को व्यर्थ करता
हमेशा
एक नए आकाश की ओर

उसका हिस्सा बनो
तनो मत
बल्कि खोलो खुद को
जैसे अन्धकार के गर्भ गृह से खुलती हैं
सुबहें
 
एक चुप के साथ
जिसे गुंजान में बदलती
भागती है चिड़िया
अनंत की ओर
और टिक जाती है
किसी डाल पर
फिर फिर उड़ने के लिए

मै तुम्हारी डाल नहीं
उड़ान हूँ मै