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मन करता है / ओम पुरोहित ‘कागद’

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मन
कुछ न कुछ
करता ही रहता है ।

मन करता है
पंखुड़ी बनूं
कली बनूंड
फल बनूं
अथवा
वह टहनी बनूं
जिस पर लगते हैं
पंखुड़ी
कली
फ़ल ।
और फ़िर करता है
बनूं भंवरा
सूंघूं फ़ूल
बेअंत
कभी करता है
बनूं रुत
केवल बसंत !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"