भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मां-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:17, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>घर में भी अलग घर बसाए रखती है मेरी मां ! दमें से उचटी नींद से उठ क…)
घर में भी
अलग घर
बसाए रखती है
मेरी मां !
दमें से
उचटी
नींद से उठ कर
देर रात तक
समेटती रहती है
अपनी तार-तार हो चुकी
सुहाग चुनरी !
बदलती रहती है कागज़
हरी जंग लगे
सुहाग कड्लों
रखडी़-बोरले-ठुस्सी की
पुडिया के
लगभग हर रात !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"