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मां-४ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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बच्चों में बच्चा
बड़ो में बडी
होती है मां ।
बच्चों में
कभी
बड़ी
नहीं होती मां !
परन्तु
हर घर में
जरूर होती है मां
रसगुल्ले में
रस की तरह !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"