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धरती-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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अंतस में
समेट रखा है
पुराना बीज
मिलते ही बूंद
पुजवा देगी
कभी मरुस्थल वासियों को
अक्षयतृतिया !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"