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धरती-८ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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धरती घुमाती है
हमें
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में
हम तो
पडे़ रहते हैं
धरती पर
मानों
गोदी में हों
मां की !

फ़िर भी
भ्रमित हो
करते रहते हैं
कोशिश
चलने की
जब कि
मालूम है हमें
धरती से अलग
दूर
नहीं जा सकते
हम
परन्तु कब अघाते हैं
हिलाते हैं पग
जानता है जग !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"