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घाव-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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होते हैं जो
घाव कभी
पुराने नहीं होते
दुगुने होते हैं ।
समय के साथ-साथ
उन्हें भी
उठाना पड़ता है
रिश्तों की तरह
लगातार ।
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"