भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-6 / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:14, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घायल मन का पागल प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



घायल मन का पागल पंछी,
रात भर रोता रहा

दूर से आया थ चलकर,
ये मुसाफ़िर दर्दे-राह
देख कर पनघट को प्यासे,
मन में जागी एक चाह
उर पिपासा बुझ ना पाई,
पनघट जल खोता रहा, घायल मन का…………

प्यार से एक फूल लेकर,
हाथ में उसके दिया
फूल के बदले पत्थर उसने,
दिल पे मार दिया
आँसुओं से जख्म दिल का
रात भर धोता रहा, घायल मन का…………

चल पड़ा फिर राह अपनी,
ले मुसाफिर अपना फूल
चोट अपने फूल ने दी,
हाय कैसी हुई भूल
दिल नहीं माना फिर भी,
फूल ही बोता रहा, घायल मन का…………1988