भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुख दुख इस जीवन में / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
Kavita Kosh से
Shubham katare (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मन से ही उत्पन्न हुए हैं खो जाते हैं मन में आते हैं जाते हैं सुख …)
मन से ही उत्पन्न हुए हैं खो जाते हैं मन में आते हैं जाते हैं सुख दुख इस जीवन में । हो मन के अनुकूल उसे ही सुख कहते हैं मन से जो प्रतिकूल उसे ही दुख कहते हैं गमनागमन किया करते हैं इच्छा के वाहन में आते हैं जाते हैं सुख दुख इस जीवन में । दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा दुख जाता है एक गया तो दूजा आया पड़ें न उलझन में सुख फूलों सा मनमोहक सुन्दर दिखता है फिर दुख आता हे तो काँटों सा चुभता है एक हंसाता एक रुलाता क्रमशः मन के वन में आते हैं जाते हैं सुख दुख इस जीवन में । दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है
और किसी का कुछ भी स्थायित्व नहीं है दुख भोगा सुख की तलाश में मिला न तन धन में आते हैं जाते हैं सुख दुख इस जीवन में ।