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कैसे-कैसे तमाशे दिखा रहीं रोटियां / सांवर दइया
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कैसे-कैसे तमाशे दिखा रहीं रोटियां।
आदमी को सुबह-शाम नचा रहीं रोटियां।
मत पूछो कहां-कहां बिके लिबास के लिए,
अब लिबास में नंगापन दिखा रहीं रोटियां!
भूख ने दिखाये हमको ये करिश्मे आज,
चांद-सूरज तक में नजर आ रहीं रोटियां!
आप ही कहिये, कैसे कोई ख़्वाब बुनें,
सोने से पहले हमें जगा रहीं रोटियां!
किताबों में तलाशें तो शायद मिल जाये,
दुनिया से आदमी अब मिटा रहीं रोटियां।