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कोई हालत नहीं ये हालत है / जॉन एलिया

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कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोभना सूरत है

अन्जुमन में ये मेरी खामोशी
गुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बस गनिमत है

ख्वाहिशे दिल का साथ छोड़ गई
ये अज़ियत बड़ी अज़ियत है

लोग मसरूफ जानते है मुझे
या मेरा गम ही मेरी फुरसत है

तंज़ पैरा-या-ए-तब्बसुम में
इस तक्ल्लुफ की क्या ज़रूरत है

हमने देखा तो हमने ये देखा
जो नहीं है वो खूबसूरत है

वार करने को जाँनिसार आए
ये तो इसार है इनायत है

गर्म-जोशी और इस कदर क्या बात
क्या तुम्हे मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अन्दर से
घर में सामन की ज़रूरत है

आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पाँव तक बदन सलामत है