भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परिंदा / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 19 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रहता हुआ हवाओं में
सांस लेता है दरियाओं में
पानी के बगैर वह जी नहीं सकता
डोलता है मौजों पे
मछलियों से इश्‍क करता है

पकड़ के साथ अपने ले जाता उन्‍हें
आसमां में बादलों से गुफ्तगू कराने
वो मिलता है उगते सूरज से
और किरनों में चमकता है

सुर्ख नीले रंगों वाला
वो आबी परिंदा
मोहब्‍बत करता है दरियाओं से
उसकी दरबानी करता है
वो एक फलसफे में है
खुदा उसे महफूज रखे
00