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आदमी होता चला गया / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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नफ़रत का भाव ज्यों ज्यों खोता चला गया
मैं रफ़्ता रफ़्ता आदमी होता चला गया ।

फिर हो गया मै प्यार की गंगा से तरबतर
गज़रा जिधर से सबको भिगोता चला गया ।

सोचा हमेशा मुझसे किसी का बुरा न हो
नेकी हुई दरिया में डुबोता चला गया ।

कटुता की सुई लेके खड़े थे जो मेरे मीत
सद्भावना के फूल पिरोता चला गया ।
 
जितना सुना था उतना ज़माना बुरा नहीं
विश्वास अपने आप पर होता चला गया ।
  
अपने से ही बनती है बिगड़ती है ये दुनिया
मैं अपने मन के मैल को धोता चला गया ।

उपजाऊ दिल हैं बेहद मेरे शहर के लोग
हर दिल में बीज प्यार के बोता चला गया ।