भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया-6 / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>चेहरे पर नहीं दुख है भीतर विशाल तुम्हें ब्याह के छोड़ दिया उसने…)
चेहरे पर नहीं
दुख है भीतर विशाल
तुम्हें ब्याह के
छोड़ दिया उसने
रोती भी नहीं
गुड़िया हो तुम !
भीतर से गीली हो
फिर क्यों हो
बाहर एकदम सूखी ?