भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया-5 / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (गुड़िया-5/ नीरज दइया का नाम बदलकर गुड़िया-5 / नीरज दइया कर दिया गया है)
यहाँ की नहीं तुम
आई हो किसी लोक से
सुंदर-सी बन गुड़िया
जब भी देखता हूँ-
पाता हूँ तुम्हें
मासूम-सी एक गुड़िया
अब बचपन जा चुका
कहाँ छुपा सकता हूँ तुम्हें -
मन के सिवाय !