भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोशनी का संदेश / नचिकेता

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 23 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} {{KKCatNavgeet}} <poem> ::रोशनी से मिल रहा संदेश चौखट …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोशनी से मिल रहा संदेश चौखट लाँघने का
उठो, मत सोए रहो, यह वक़्त है ख़ुद जागने का

झर गई खिलकर
सुबह तक महमहाती रातरानी
जिसे हँसने चहचहाने की
पड़ी क़ीमत चुकानी
चहक उट्ठा जागकर संसार सोए आँगने का ।

किवाड़ों पर थाप
देकर अभी गज़री हैं हवाएँ
घोंसले में छिपी चिड़ियों ने
सिकोड़े पर फुलाए
फूल ने खिलकर भरोसा दिया तंद्रा त्यागने का ।

पेड़ के ऊपर
गिलहरी फिर लगी चढ़ने-उतरने
मुंडेर पर सगुनपंछी गीत में
सुर-तान भरने
आज मौसम कर रहा ठट्ठा दुआएँ मांगने का ।

ज़िन्दगी की
हलचलों में खो गई पगडंडियाँ हैं
बन गया भूलोक जब से अमरीका
की मंडियाँ हैं
कर लिया संकल्प जिसने पृथ्वी को धाँगने का ।