भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिनकी वज़ह से आप उदास हैं / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:14, 24 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>जिनकी वज़ह से आप उदास है। गिनती में वे कुल सौ पचास हैं! देखो, अब क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिनकी वज़ह से आप उदास है।
गिनती में वे कुल सौ पचास हैं!

देखो, अब कौन कहां बिक सकता,
उनकी बज्म लग रहे क़यास हैं।

खुश हो जिस पर कर दिये दस्तखत,
यह आपके सपनों की लाश है!

आ जाते हैं वे फिर ललचाने,
होती जब मंजिल बहुत पास है।

चिनगारी से जल जाता जंगल,
आप अंगारे होकर उदास हैं?